Neeraj Agarwal

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लेखनी कहानी -05-Mar-2024

शीर्षक स्वामी दयानंद जयंती


        हम सभी लोग भारतवर्ष में दयानंद सरस्वती जी की जयंती मार्च में मनाते हैं परंतु जीवन के इतिहास से हम समझते हैं कि स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म ( 12 फरवरी 1824 को गुजरात के टंकारा में हुआ था. मूल नक्षत्र में जन्म होने के कारण उनका नाम मूलशंकर रखा गया था।उन्होंने कहा कि स्वामी दयानंद ने भारतीय समाज में फैली अशिक्षा, विदेशी गुलामी, विधवाओं पर होने वाले अत्यचार, शोषण, छुआछूत, अत्याचार रोकने, पुनर्विवाह करने, सती प्रथा रोकने जैसी अनेक कुरीतियों को दूर करने पर विशेष बल दिया। उन्होंने कहा कि स्वामी दयानंद की प्रेरणा से ही देश में गुरुकुल खोले गए। स्वामी दयानन्द जी ने सार्वभौमिक शिक्षा का प्रतिपादन किया। उन्होनें कहा कि माता-पिता तथा राज्य के लिए यह आवश्यक है कि सभी को अनिवार्य रूप से शिक्षित किया जाये ताकि स्वयं वेदों का अध्ययन कर उनके अनुकूल आचरण करें व दूसरो द्वारा दी गई व्याख्या को मानने के लिए बाध्य न हो। स्वामी विरजानन्द(1778-1868), संस्कृत के विद्वान, वैदिक गुरु और आर्य समाज संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती के गुरु थे। इनको मथुरा के अंधे गुरु के नाम से भी जाना जाता था। आर्य समाज एक हिन्दू सुधार आन्दोलन है. इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य हिंदू धर्म में फैली विभिन्न प्रकार की भ्रांतियां समाप्त कर लोगों को वेदों के सही ज्ञान की जानकारी देना है। आर्य किसी जाति का नहीं बल्कि एक विशेष विचारधारा को मानने वाले का समूह था जिसमें श्‍वेत, पित, रक्त, श्याम और अश्‍वेत रंग के सभी लोग शामिल थे। नयी खोज के अनुसार आर्य आक्रमण नाम की चीज न तो भारतीय इतिहास के किसी कालखण्ड में घटित हुई और ना ही आर्य तथा द्रविड़ नामक दो पृथक मानव नस्लों का अस्तित्व ही कभी धरती पर रहा।आर्य समाज वेदों के अविभाज्य प्राधिकार पर विश्वास करता था और इस तरह 'वेदों की ओर वापस जाओ' का नारा देता था।

एक रियासत के शासक की जोरदार सार्वजनिक आलोचना के बाद दयानंद की मृत्यु हो गई, ऐसी परिस्थितियों में यह सुझाव दिया गया कि उन्हें महाराजा के श्री समर्थकों में से किसी ने जहर दिया होगा, लेकिन आरोप अदालत में कभी साबित नहीं हुआ। आजकल जो कल्पना के साथ हम सभी कहीं ना कहीं से पढ़कर सोचकर या इंटरनेट गूगल से कुछ जानकारी लेकर इतिहास के पन्नों से कुछ सोच समझ कर ही हम महान विभूतियों के विषय में लिख सकते हैं क्योंकि रचनाकार लेखक भी आज के समाज में पुरातत्व इतिहास की विख्यात जानकारी नहीं हो सकते हैं तथा आप सभी को स्वामी दयानंद सरस्वती जी की जयंती पर विशेष जानकारी अगर सही लगे तो सहयोग और लाइक करें और हम जैसे नई वर्दी लेखन का और उत्साह वर्धन करें ।

नीरज अग्रवाल चंदौसी उप्र धन्यवाद

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4 Comments

Gunjan Kamal

13-Mar-2024 11:12 PM

बहुत खूब

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Varsha_Upadhyay

08-Mar-2024 09:53 AM

Nice

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Babita patel

06-Mar-2024 02:31 PM

V nice

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